हम गांधी नहीं

दिमाग, उड़ा हवा में,
पैर, जमीन पर रख।
मन चंचल रहने दे ,
जिंदगी के मज़े चख।
बदलाव का वक्त है,
साथियों इसे पहचान।
माँग और पूर्त्ति की,
अर्थशास्त्र को जान।
कुछ कर सकें तो करें,
कुछ वक्त पर छोड़ें।
चुनौतियों को जानें,
अपने -आप से लड़ें।
हम चलें उधर ही,
जिधर हवा बहती।
संकट की आंधी भी,
रोक नहीं सकती।
हम सब कौन हैं?
इसे तो जानें।
हम गांधी नहीं,
इसे तो माने।

रचयिता : वनवासी विकास आश्रम गिरिडीह के सचिव हैं
Nice Thought
क्या गाँधी बनना चाहिए?